24 September, 2010

यादें-11( भय और अंध विश्वास )

यादें-1, यादें-2, यादें-3यादें-4यादें-5, यादें-6यादें-7यादें-8यादें-9, यादें-10 से जारी.....
                        ऐसा अक्सर देखा जाता है कि माता-पिता अपनी समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए अपने बच्चों को नाना प्रकार के भय दिखाते हैं। स्कूल से सीधे घर आ जाना नहीं तो लकड़ सुंघवा उठा ले जाएगा ! दूध पी लो नहीं तो बंदर काट लेगा ! झूठ बोले कौआ काटेके तर्ज पर नाना प्रकार के झूठ की पट्टी मासूम बच्चों के मन मस्तिष्क में इस तरह चढ़ा दी जाती है कि बड़े होने तक उसके प्रभाव से आदमी डरता रहता है। श्रीकांत को भी उसके माता-पिता हमेशा पुलिस का भय दिखाते रहते थे। गली में चींया खेलोगे तो पुलिस पकड़ कर ले जाएगी ! देर शाम तक छत पर पतंग उड़ाओगे तो पुलिस को दे देंगे। संध्या नहीं करोगे तो पुलिस समझ जाएगी कि यह ब्राह्मण का बच्चा नहीं है और जेल में बंद कर देगी ! बचपन से श्रीकांत को पुलिस का भय दिखाने का परिणाम यह हुआ कि बड़ी कक्षाओं में पढ़ने तक वह पुलिस को देखते ही मारे डर के भाग जाया करता था ! साथियों के साथ गली में खेलते-खेलते अचानक से कहता, घर जा रहा हूँ ! लाख पूछो, कुछ न बताता। वो तो बहुत दिनों के बाद आनंद को आशा ताई से पता चला कि वह पुलिस से डरता है ! जानकारी होने के बाद आनंद, श्रीकांत को खूब समझाने का प्रयास करता लेकिन आनंद के समझाने का उस पर उल्टा ही असर होता। वह समझता कि आनंद उसे चिढ़ा रहा है ! आनंद, उसके दिल में एक अजीब सी कश-म-कश, एक अजीब सा दर्द महसूस करता। आनंद ने श्रीकांत को हताश-निराश हो, घर के अंदर दुबक कर बैठते और दूसरे साथियों के साथ, अपनी गली से दूर खेल के मैदान तक जाने में भी इन्कार करते पाया था !
            बच्चों को झूठे भय दिखाने के अलावा धार्मिक मान्यता प्राप्त कुछ अंध विश्वास भी मानसिक तरक्की की राह में रोड़ा बनते हैं। ऐसे अंध विश्वास जिनसे हम बड़े होने तक उबर नहीं पाते और बुद्धिमत्तापूर्ण तरीकों से उनकी सत्यता का दावा पेश करते हुए नाना तर्क देते रहते हैं। जैसे, बिल्ली रास्ता काट दे तो आगे दुर्घटना होने का खतरा है !” फिर इसके उपाय भी बताए जाते हैं...थोड़ी देर के लिए रूक जाओ ! या उल्टा चलो ! रुको ! फिर घर से निकलो !” या फिर, घर से निकलते वक्त कोई दाहिने छींक दे भयंकर अशुभ होता है ! ”या, शुभ कार्य में किसी विधवा का सामने आना अमंगलकारी होता है ! पहले तो नन्हीं बालिका को बूढ़े का साथ विवाह दो फिर जब वह जवानी में कदम रखते ही विधवा हो जाय तो उसे अशुभ मान कर जीवन भर मानसिक यातना दो ! ये दो तीन  उदाहरण तो एक झलक मात्र हैं और न जाने कितने अंध विश्वासों को हमने अपने यकीन में शुमार कर अपना और अपने बच्चों का जीवन कंटकों से भर दिया है ! ज्ञान-विज्ञान की कसौटी पर ये अंध विश्वास कभी खरे नहीं उतरते । कितनी बेवकूफी पूर्ण और क्रूरता से भरे अंध विश्वास हैं ये ! लेकिन हम हैं कि इन्हें सदियों से ढोए जा रहे हैं ! सामान्य जन तो क्या विद्वान साहित्यकारों तक ने भी इसे अपने साहित्य में स्थान देकर मान्यता प्रदान की ! कौन सा भय है यह जिसके कारण हम इन अंध विश्वासों से उबर नहीं पाते ? यह वही भय  है जो अनजाने में श्रीकांत के भोले-भाले, सीधे-सरल, धार्मिक माता-पिता ने श्रीकांत की घुट्टी में दूध में शक्कर की तरह अपने उपदेश में मिलाकर पिला दिया ! सदियों से, पीढ़ी दर पीढ़ी इन अंधविश्वासों को सीने से लगाए हम आज भी जिए जा रहे हैं और अपने बच्चों को सिखाए जा रहे हैं ! कब तक ? कब श्रीकांत का बचपन खुली हवा में सांस ले सकेगा ? एक्किसवीं सदी के बाद क्या बाइसवीं सदी का इंतजार है ? एक दूसरा सत्य यह भी है कि एक ओर तो हम अपने पुर्वजों के अंध विश्वास पीढ़ी दर पीढ़ी ढोए जा रहे हैं मगर दूसरी ओर सबसे बड़ा आश्चर्य यह है कि उनकी नैतिकता, उनकी ईमानदारी, उनके आदर्श, पुराने वस्त्रों की तरह उतारते चले जा रहे हैं !
(जारी....)                          

5 comments:

  1. सही कहा जी ओर फ़िर बच्चा इन सब से डरने लगता है, उस के दिल ओर दिमाग मै बचपन से ही जब यह डर घर कर जाये तो, बडा होने पर उसे दुर करना कठिन होता है, वेसे भी बच्चे को कभी भी जवर्दस्ती मत खिलाओ,
    धन्यवाद

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  2. इस आत्मकथात्मक संस्मरण का सबसे अच्छा पहलू यह है कि यह मात्र एक निसंग आत्मकेंद्रित आत्मालाप न होकर जन हितार्थ व्यक्त होता लग रहा है -
    राम जनम जग मंगल हेतू

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  3. परवरिश के वक़्त जाने अनजाने मे अभिभावक जो गलतियां कर बैठते हैं बच्चे को सारी जिंदगी उस का खामियाजा भुगतना पड़ता है ! पिछले दो अंको से झलक रही इस चिंता से पूर्णतः सहमत हूं !

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  4. आपने अछ्छा चित्रण किया है.आदमी के अवचेतन मन में डर इस तरह से बैठ जाता है कि निकालने का उपाय करना लगभग ब्यर्थ-सा हो जाता है.
    कृपया rememme.com में मेरा लेख पढ़ें.

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  5. डर और भय तात्कालिक प्रभाव के लिये उत्पन्न किये जाते थे पर ये अंततोगत्वा स्वभाव के लक्षण बन जाते थे.
    हमारे यहाँ भी भ्रम था कि विजयादशमी के दिन हनुमान की पूजा न होने पर अनिष्ट की सम्भावना बनी रह्ती है.

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